छल Cheating Deceit
God Is Great - God's Way is Still The Best Way. Spiritual Motivational Story
एक संत के पास बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था । उसे कान तो थे पर वे नाड़ियों से जुड़े नहीं थे । एकदम बहरा, एक शब्द भी सुन नहीं सकता था । किसी ने संतश्री से कहा :-
” बाबा जी ! वे जो वृद्ध बैठे हैं, वे कथा सुनते-सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं । “
बहरे मुख्यतः दो बार हँसते हैं – एक तो कथा सुनते-सुनते जब सभी हँसते हैं तब और दूसरा अनुमान करके बात समझते हैं तब अकेले हँसते हैं ।
बाबा जी ने कहा :- ” जब बहरा है तो कथा सुनने क्यों आता है ? रोज एकदम समय पर पहुँच जाता है । चालू कथा से उठकर चला जाय ऐसा भी नहीं है, घंटों बैठा रहता है । “
बाबाजी सोचने लगे, ” बहरा होगा तो कथा सुनता नहीं होगा और कथा नहीं सुनता होगा तो रस नहीं आता होगा । रस नहीं आता होगा तो यहाँ बैठना भी नहीं चाहिए, उठकर चले जाना चाहिए । यह जाता भी नहीं है ! ”
बाबाजी ने उस वृद्ध को बुलाया और उसके कान के पास ऊँची आवाज में कहा :- ” कथा सुनाई पड़ती है ? “
उसने कहा :- ” क्या बोले महाराज ? “
बाबाजी ने आवाज और ऊँची करके पूछा :- ” मैं जो कहता हूँ, क्या वह सुनाई पड़ता है ? “
उसने कहा :- ” क्या बोले महाराज ? “
बाबाजी समझ गये कि यह नितांत बहरा है…. बाबाजी ने सेवक से कागज कलम मँगाया और लिखकर पूछा ।
वृद्ध ने कहा :- ” मेरे कान पूरी तरह से खराब हैं । मैं एक भी शब्द नहीं सुन सकता हूँ । “
कागज कलम से प्रश्नोत्तर शुरू हो गया ।
बाबाजी :- ” फिर तुम सत्संग में क्यों आते हो ? “
” बाबाजी ! सुन तो नहीं सकता हूँ लेकिन यह तो समझता हूँ कि ईश्वरप्राप्त महापुरुष जब बोलते हैं तो पहले परमात्मा में डुबकी मारते हैं । संसारी आदमी बोलता है तो उसकी वाणी मन व बुद्धि को छूकर आती है लेकिन ब्रह्मज्ञानी संत जब बोलते हैं तो उनकी वाणी आत्मा को छूकर आती हैं । मैं आपकी अमृतवाणी तो नहीं सुन पाता हूँ पर उसके आंदोलन मेरे शरीर को स्पर्श करते हैं । दूसरी बात, आपकी अमृतवाणी सुनने के लिए जो पुण्यात्मा लोग आते हैं उनके बीच बैठने का पुण्य भी मुझे प्राप्त होता है । “
बाबा जी ने देखा कि ये तो ऊँची समझ के धनी हैं । उन्होंने कहा :- ” आप दो बार हँसना, आपको अधिकार है किंतु मैं यह जानना चाहता हूँ कि आप रोज सत्संग में समय पर पहुँच जाते हैं और आगे बैठते हैं, ऐसा क्यों ? “
” मैं परिवार में सबसे बड़ा हूँ । बड़े जैसा करते हैं वैसा ही छोटे भी करते हैं । मैं सत्संग में आने लगा तो मेरा बड़ा लड़का भी इधर आने लगा । शुरुआत में कभी-कभी मैं बहाना बना के उसे ले आता था । मैं उसे ले आया तो वह अपनी पत्नी को यहाँ ले आया, पत्नी बच्चों को ले आयी – सारा कुटुम्ब सत्संग में आने लगा, कुटुम्ब को संस्कार मिल गये । “
ब्रह्मचर्चा, आत्मज्ञान का सत्संग ऐसा है कि यह समझ में नहीं आये तो क्या, सुनाई नहीं देता हो तो भी इसमें शामिल होने मात्र से इतना पुण्य होता है कि व्यक्ति के जन्मों-जन्मों के पाप-ताप मिटने एवं एकाग्रतापूर्वक सुनकर इसका मनन-निदिध्यासन करे उसके परम कल्याण में संशय ही क्या !
एक राजा के पास दस जंगली कुत्ते थे। वह गलती करने वाले अपने किसी भी नौकर को उनके सामने दाल दिया करता था । एक बार एक नौकर ने गलती की इसलिए उसने आदेश दिया कि नौकर को कुत्तों के पास फेंक दिया जाए।
नौकर ने कहा, “मैंने आपको बीस साल तक सेवा दी है कृपया मुझे उन कुत्तों को फेंकने से पहले इनके साथ २० दिन बिताने का समय दे दीजिये ! " राजा मान गया।
जब बीस दिन बीत गए, तो राजा ने आदेश दिया कि सेवक को उसकी सजा के लिए कुत्तों को फेंक दिया जाए। जब वह अंदर फेंका गया, तो सभी बहुत हैरान थे कि सभी कुत्ते को केवल नौकर के पैर चाटते लगे!
राजा, जो वह देख रहा था उससे चकित होकर उसने कहा,
"मेरे कुत्तों को क्या हुआ है?"
नौकर ने जवाब दिया, "मैंने केवल बीस दिनों के लिए कुत्तों की सेवा की, और वे मेरी सेवा को नहीं भूले। मैंने आपको पूरे बीस साल तक सेवा की और आप मेरी पहली गलती पर सब कुछ भूल गए!"
राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने नौकर को मुक्त करने का आदेश दिया।
हम इंसान किसी की एक गलती पर ही उसकी उन अच्छी चीजों को भूल जाते हैं पाता नहीं क्यों।
देबेन्द्र मूलतः बिहार के रहने वाले हैं.....
एक दिन देबेन्द्र की टैक्सी में काश्मीर का निवासी बैठा....उसे एयरपोर्ट से पहाड़गंज तक जाना था। देबेन्द्र ने उसको पहाड़गंज छोड़ा...... अपना किराया वसूला.. और वापिस टैक्सी स्टैंड की ओर चल पड़े। इसी बीच उनकी नज़र गाड़ी में पड़े एक बैग पर गयी।
बैग को उठाया तो समझने में क्षण भर भी ना लगा के यह सवारी का बैग है...... जिसे कुछ ही समय पहले वह पहाड़गंज छोड़ कर आये हैं। बैग को खंगाला तो देबेन्द्र दंग रह गये।
बैग में कुछ स्वर्ण आभूषण, एक एप्पल का लैपटॉप, एक कैमरा और कुछ नगद पैसे थे......
सब कुछ मिला के लगभग 7 या 8 लाख का सामान था।।
एक दम देबेन्द्र की आँखों के सामने फाइनेन्सर की तस्वीर आ गयी। इतने आभूषण बेच कर तो कर्जा आसानी से उतर सकता था। एक दम से प्रसन्न हो उठे।
मन में बैठा रावण जाग उठा। पराया माल अपना लगने लगा।
परन्तु जीवन की यही तो विडम्बना है।
मन में राम और रावण दोनों निवास करते हैं।
कुछ ही दूर गये थे के मन में बैठे राम जाग उठे। देबेन्द्र को लगा के वह कैसा पाप करने जा रहे थे।
नैतिकता आड़े आ गयी।
बड़ी दुविधा थी। एक ओर आभूषण सामने पड़े थे और दूजी ओर अपनी अंतरात्मा खुद को ही धिक्कार रही थी।
कुछ देर द्वंद चला पर अंत में विजय राम की ही हुई। देबेन्द्र पास के पुलिस स्टेशन गये और बैग ड्यूटी पर मौजूद थानेदार के हाथ में थमा दिया।
अब थानेदार कभी बैग में पड़े आभूषण देखे और कभी देबेन्द्र का चेहरा देखे.....थानेदार ने कहा के तू अगर चाहता तो यह बैग लेकर भाग सकता था।
देबेन्द्र ने जवाब दिया साहब हम "गरीब" हैं "बेईमान" नहीं हैं।
थानेदार भी निःशब्द हो गया। उसे लगा पता नहीं यह आदमी किस मिट्टी का बना है।
ख़ैर सवारी को उसका बैग सकुशल वापिस मिल गया। देबेन्द्र कि ईमानदारी के इनाम के रूप में मालिक ने उसे कुछ रुपये देने की पेशकश की तो देबेन्द्र ने साफ मना कर दिया।
..............................................
असल कथा अब शुरू होती है –
थानेदार ने देबेन्द्र की ईमानदारी की गाथा एक मीडियाकर्मी के आगे सुना दी ।
मीडियाकर्मी भी थानेदार की तरह अवाक रह गया। उसने देबेन्द्र की ईमानदारी की खबर अखबार में छापने की ठान ली ।
वह देबेन्द्र से मिला और उसका साक्षात्कार लेते हुये पूछा के अगर बैग में पड़े सामान की कीमत (8 लाख रुपये) उसे मिल जायें तो वह क्या करेगा।
देबेन्द्र ने आपबीती सुना दी। उसने कहा के पहले तो फाइनेन्सर का कर्जा चुकाएगा और फिर अगर सम्भव हुआ तो एक टैक्सी खरीदेगा।
पहले थानेदार हैरान हुआ था अब रिपोर्टर महोदय हैरान हो गये।
रिपोर्टर ने कहा के तेरे सर पर कर्ज़ है तो तू बैग लेकर भाग क्यों नहीं गया।
देबेन्द्र ने रिपोर्टर महोदय से भी कहा के साहब, हम गरीब हैं पर बेईमान नहीं हैं।
थानेदार की तरह अब रिपोर्टर को भी लगा के यह आदमी किस मिट्टी का बना है।
रिपोर्टर ने देबेन्द्र की ईमानदारी की गाथा एफ एम चैनल के एक रेडियो जॉकी को बताई।
एफ एम रेडियो के ज़रिए देबेन्द्र की कहानी दिल्लीवासियों को सुना दी गई...
साथ ही साथ दिल्ली वालों को देबेन्द्र के कर्ज के विषय में भी बताया। इसी के साथ एक खाता नम्बर भी दे दिया.... जिसमे धनराशि डाल कर वह ईमानदार देबेन्द्र का कर्ज़ा उतारने में उसकी मदद कर सकते थे।
2 घँटे......
मात्र 120 मिनट में
दिल्ली ने देबेन्द्र के खाते में 91751 रुपये डलवा दिये।
टोटल 8 लाख रुपये मिले मात्र 2 दिन में।।
सबने अपनी हैसियत के हिसाब से पैसा दिया........... और दिलवाली दिल्ली ने देबेन्द्र की ईमानदारी के उपहार में उसे ऋण मुक्त कर दिया।
लाखों लोगों ने देबेन्द्र की ईमानदारी को सराहा....
देबेन्द्र आज भी कहते हैं के मन के रावण को राम पर हावी ना होने देना उनके जीवन की सबसे बड़ी जीत थी। अगर वह बैग लेकर भाग जाते तो कर्ज़ा तो उतार लेते पर खुद को कभी माफ ना कर पाते।
मैं मानता हूँ के मन में बैठा रावण आज की व्यवस्था में हावी है। परन्तु बारीकी से देखें तो मन में बैठा राम आज भी दशानन का वध करने में सक्षम है।
अच्छाई और बुराई मे आज भी धागे भर का फासला है। इस ओर गये तो राम.....और उस ओर गये तो रावण।
देबेन्द्र ने दिल की सुनी और दिमाग के तर्क को नकार दिया।
दिल से सोचने वालों के लिये एक बड़ी खूबसूरत बात कही गयी है –
"दिल होता "लेफ्ट" में है....पर होता हमेशा राइट है..💞
यकीन न हो तो गूगल कर लीजिए कहानी बिल्कुल सच है।
Labels: किसान
Labels: Motivational
Labels: Motivational