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आत्मा अविनाशी है Soul is Immortal

                आत्मा अविनाशी है 
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प्रातः काल का समय था। गुरुकुल में हर दिन की भांति गुरूजी अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। 
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आज का विषय था- “आत्मा” ..
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आत्मा के बारे में बताते हुए गुरु जी ने गीता का यह श्लोक बोला –
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नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।
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अर्थात: आत्मा को न शस्त्र छेद सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न जल उसे गला सकता है और न हवा उसे सुखा सकती है। 
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इस आत्मा का कभी भी विनाश नहीं हो सकता है, यह अविनाशी है।
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यह सुनकर एक शिष्य को जिज्ञासा हुई, वह बोला, “किन्तु गुरुवर यह कैसे संभव है..? 
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यदि आत्मा का अस्तित्व है, वो अविनाशी है, तो भला वो इस नाशवान शरीर में कैसे वास करती है और वो हमें दिखाई क्यों नहीं देती..? क्या सचमुच आत्मा होती है..?”
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गुरु जी मुस्कुराए और बोले, पुत्र आज तुम रसोईघर से एक कटोरा दूध ले लेना और उसे सुरक्षित अपने कमरे में रख देना। 
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और कल इसी समय वह कटोरा लेकर यहाँ उपस्थित हो जाना।
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अगले दिन शिष्य कटोरा लेकर उपस्थित हो गया।
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गुरु जी ने पूछा, “क्या दूध आज भी पीने योग्य है..?”
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शिष्य बोला, “नहीं गुरूजी, यह तो कल रात ही फट गया था…. लेकिन इसका मेरे प्रश्न से क्या लेना-देना..?”
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गुरु जी शिष्य की बात काटते हुए बोले, “आज भी तुम रसोई में जाना और एक कटोरा दही ले लेना, और कल इसी समय कटोरा लेकर यहाँ उपस्थित हो जाना।

अगले दिन शिष्य सही समय पर उपस्थित हो गया।
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गुरु जी ने पूछा, “क्या दही आज भी उपभोग हेतु ठीक है ?”
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शिष्य बोला, “जी हाँ गुरूजी ये अभी भी ठीक है।”
अच्छा ठीक है कल तुम फिर इसे लेकर यहाँ आना, गुरूजी ने आदेश दिया।
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अगले दिन जब गुरु जी ने शिष्य से दही के बारे में पूछा तो उसने बताया कि दही में खटास आ चुकी थी और वह कुछ खराब लग रही है।
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इस पर गुरूजी ने कटोरा एक तरफ रखते हुए कहा, “कोई बात नहीं, आज तुम रसोई से एक कटोरा घी लेकर जाना और उसे तब लेकर आना जब वो खराब हो जाए..!”
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दिन बीतते गए पर घी खराब नहीं हुआ और शिष्य रोज खाली हाथ ही गुरु के समक्ष उपस्थित होता रहा।
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फिर एक दिन शिष्य से रहा नहीं गया और उसने पूछ ही लिए, “गुरुवर मैंने बहुत दिनों पहले आपसे पश्न किया था कि.. 
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“यदि आत्मा का अस्तित्व है, वो अविनाशी है, तो भला वो वो इस नाशवान शरीर में कैसे वास करती है..
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और व हमें दिखाई क्यों नहीं देती..? क्या सचमुच आत्मा होती है..?”
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पर उसका उत्तर देने की बजाये आपने मुझे दूध, दही, घी में उलझा दिया। क्या आपके पास इसका कोई उत्तर नहीं है..?”
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इस बार गुरूजी गंभीर होते हुए बोले, “वत्स मैं ये सब तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने के लिए ही तो कर रहा था.. 
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देखो दूध, दही और घी सब दूध का ही हिस्सा हैं… लेकिन दूध एक दिन में खराब हो जाता है.. दही दो-तीन दिनों में लेकिन शुद्ध घी कभी खराब नहीं होता।
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इसी प्रकार आत्मा इस नाशवान शरीर में होते हुए भी ऐसी है कि उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।
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“ठीक है गुरु जी, मान लिया कि आत्मा अविनाशी है लेकिन हमें घी तो दिखाई देता है पर आत्मा नहीं दिखती..?
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गुरु जी बोले, “घी अपने आप ही तो नहीं दिखता न..? पहले दूध में जामन डाल कर दही में बदलना पड़ता है, फिर दही को मथ कर उसे मक्खन में बदला जाता है..
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फिर कहीं जाकर जब मक्खन को सही तापमान पर घंटों पिघलाया जाता है तब जाकर घी बनता है..!

हर इंसान आत्मा का दर्शन यानी आत्म-दर्शन कर सकता है, लेकिन उसके लिए पहले इस दूध रुपी शरीर को भजन रूपी जामन से पवित्र बनाना पड़ता है..
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उसके बाद कर्म की मथनी से इस शरीर को दीन-दुखियों की सेवा में मथना होता है..
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और फिर सालों तक साधना व तपस्या की आंच पर इसे तपाना होता है… तब जाकर आत्म-दर्शन संभव हो पाता है!
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शिष्य गुरु जी की बात अच्छी तरह से समझ चुका था, आज उसकी जिज्ञासा शांत हो गयी थी.. 
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उसने गुरु के चरण-स्पर्श किये और आत्म-दर्शन के मार्ग पर आगे बढ़ गया

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