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देश के किसान अन्नदाता या देशद्रोही!

#WeStandWithFarmers
जब किसान की बात आती है तो दो तरह की इमेज देखने को मिलती है एक तो इमेज है खुशहाल किसान और एक दूसरी इमेज भी दिखाई देती है जिसमें फटे हुए कपड़े सूखी हुई हड्डियों का ढांचा दीन हीन दुर्बल सा किसान और किसान की ऐसी फोटो बनाकर दिखाई जाती है कि जैसे किसान किसी भिखारी की तरह हो तरस का पात्र हो फोटो आपको दोनों ही नीचे देखने को मिलेगी।
   किसानों के प्रति मीडिया ने हमारी सोच ऐसी बना कर रखी है की किसान बस सिर्फ तंग हाल फटे कपड़े और आत्महत्या करते दिखाई देते हैं हमें भी लगता है कि किसान ऐसी ही होंगे और बस किसी तरह जी रहे हैं इसके लिए उन्हें सरकार का बहुत-बहुत धन्यवाद करना चाहिए लेकिन हकीकत यह नहीं है सभी किसान ऐसे ही है ।
 किसान भी खुशहाल हैं किसान ट्रैक्टरों के भी मालिक हैं गाड़ियों के भी मालिक हैं। किसानों का ट्रैक्टर और किसानों की गाड़ियां आज बहुत से लोगों की आंखों में चुभ रही हैं क्योंकि उन्हें तो मीडिया में यही दिखाया गया था कि सिर्फ हड्डियों का ढांचा फटे कपड़े निर्धन गरीब सा किसान उन्हें लगता है कि किसान तो वही है जिसके शरीर बहुत ही दुर्बल सा हो बिना स्केनर के ही शरीर की 206 हड्डियां दिखती हो फटे कपड़े हो टांके लगे हुए और खाली थाली लेकर बैठा हुआ होना चाहिए यही सोच बन चुकी है और इसी सोच के कारण जो किसान ट्रैक्टर और गाड़ियों में चल रहे हैं उन्हें वह सब के सब देशद्रोही और भाड़े के टट्टू पार्टी विशेष द्वारा भड़काऊ हुए लोग और विदेशी फंड पर पलने वाले बताया जा रहा है जैसी कि कुछ बिकाऊ मीडिया भी हमें दिखा रहा है।
  किसान देश का अन्नदाता है कोई फटे हाल भिखारी नहीं किसान देश का अन्नदाता है उसे भी हक है गाड़ियों में चलने का उसे भी हक है बढ़िया से बढ़िया ट्रैक्टर रखने का उसे भी हक है बढ़िया से बढ़िया कपड़े पहनने का सोच बदलो तभी देश बदलेगा।
  देश की असल जीडीपी किसान हैं और यह देश भी किसान प्रधान देश है देश के सभी किसान खुशहाल हो अमीर हो अपने-अपने ट्रेक्टर हो गाड़ियां हो ऐसी कामना करें ना कि सिर्फ कॉर्पोरेट जगत के लोगो की जो हमारा आपका आम लोगों का दिया हुआ टैक्स का पैसा लोन में लेकर देश से रफूचक्कर हो जाते हैं उनके 15 हजार करोड़ तो सेटलमेंट हो जाते हैं लेकिन एक किसान का ₹100000 का लोन सेटेलमेंट नहीं होता और उन्हें इतना प्रताड़ित किया जाता है कि उन्हें फांसी लगाकर मरना पड़ता है लेकिन फिर भी दुर्गति उनका पीछा नहीं छोड़ती है। 
 एक किसान की आमदनी पिछले 70 सालों में 21 गुना बढ़ी है लेकिन वही नौकरशाहों की आमदनी 181 गुना बढ़ गई है आज जो लोग ₹100000 तनख्वाह ले रहे हैं अगर उनका भी कैलकुलेशन करके किसानों की आमदनी के बराबर 21 गुना ही कर दिया जाए तो एक लाख से उनकी तनख्वाह 9000 पर आ जाएगी फिर आपको हर सरकारी ऑफिस में किसानों के जैसे ही रोज किसी न किसी कर्मचारी के फांसी पर लटकने की खबर आएगी। 
  सरकार ने करोना का फायदा उठाते हुए अपनी मनमर्जी से तीन कानून पास करवा लिए जो कि सिर्फ 30% ही किसान के हक में हैं और 70% किसान के खिलाफ में हैं। सबसे गंदा नियम तो पहला ही है जो कि स्टॉक मार्केट का अधिकार दे देता है और स्टॉक मार्केट करेंगे कौन क्या लगता है छोटे व्यापारी यह सब बड़े व्यापारियों का काम है जिनको सरकार ने कालाबाजारी करने की छूट दे दी है वह जैसे चाहेंगे वैसे ही होगा छोटे व्यापारियों का तो काम ही खत्म हो गया और कालाबाजारी स्टॉक मार्केट करने वालों को सरकार की मुहर भी मिल गई कि आपको अब कोई भी कुछ नहीं कहेगा युद्ध और सिर्फ आपदा के समय स्टॉक नहीं कर सकते उसके बिना आप स्टॉक कर सकते हैं सरकार का यह विधेयक के आगे प्रशासन भी फेल होगा क्योंकि जब भी कभी प्रशासन कालाबाजारी करने वालों पर छापा मारेगा तो वह तो पहले ही दिखा देंगे कि देखिए सरकार ने तो हमें परमिशन दी हुई है क्योंकि अभी ना तो युद्ध चल रहा है ना ही कोई आपदा घोषित हुआ है तो हम स्टॉक कर सकते हैं। समझ नहीं आता सरकार ने क्या सोचकर कालाबाजारी करने वालों के हक में यह कानून पास कर दिया। 
  बात रही एमएसपी की तो एमएसपी के जो आंकड़े हैं पूरी भारत में सिर्फ 6% अनाज ही सरकार खरीदती थी बाकी अनाज तो किसानों को बाहर ही बेचना पड़ता था और उसमें भी भ्रष्ट एफसीआई के कर्मचारी जो किसानों को भंडारण की क्षमता का हवाला देकर या फिर हमारे पास जगह नहीं है बोलकर एमएसपी रेट पर अनाज लेने से मना कर देते थे और फिर खुद दलाल बन कर खुद ही मंडी में जाकर खड़े होकर किसानों से अनाज खरीद कर उसी गोदाम में भर देते थे यह खेल जो भी लोग किसानी से जुड़े हुए हैं बड़े आराम से समझते होंगे। 
   फर्ज कीजिए सरकार ने कह दिया कि हम गेहूं ₹20 खरीदेंगे एमएसपी रेट पर लेकिन जब किसान अपना गेहूं लेकर एफसीआई के पास जाता है तो एफसीआई के जो सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट हैं वह कहते हैं कि हमारे पास अनाज रखने का जगह नहीं है बोरा नहीं है किसान बेचारा दुखी होकर फिर मंडी में जाता है जहां पर कि पहले से ही व्यापारी दलाल बैठे हुए हैं व्यापारी दलाल कहता है यह हमारा तो रेट ₹12 है बेचना है तो ठीक नहीं तो घर ले जाओ किसान मजबूरी में अपना गेहूं ₹12 में बेच देता है वही पीछे छुपकर खड़ा सरकारी भ्रष्ट कर्मचारी दलाल के सामने आता है और कहता है कि उसने ₹12 भेजा है मैं देता हूं ₹14 यह गेहूं मुझे दे दो और वह ₹14 में गेहूं ले जाकर एफसीआई के गोदाम में भर देता है और कागजों में लिख देता है कि किसान से ₹20 के हिसाब से गेहूं खरीदा गया और सीधा-सीधा ₹6 का फायदा भ्रष्ट नौकरशाहों की जेल में चला जाता है। एमएसपी का तो खेल ही यही है अब किसान बेचारा करे तो करे क्या जाए तो जाए कहां🤔
  इस देश में सबसे बड़ा देशद्रोह और आतंकवाद भ्रष्टाचार है और इस भ्रष्टाचार रूपी आतंकवादी आग में सरकार अपना हाथ नहीं डालना चाहती है पीछे हटना चाहती है भागना चाहती है जरूरत है देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने की ना कि जो किसान अपने हक के लिए शांत मई प्रदर्शन कर रहे हैं उनको देशद्रोही देने की लेकिन सरकार यही कर रही है और दिमाग से पैदल व अंधभक्त बंधुआ मजदूरों को भी इस काम में लगाया हुआ है कि किसानों को देशद्रोही बोलो सोशल मीडिया पर बैठकर लेकिन यह झूठ चलने वाला नहीं है। 
   किसान को उनका हक मिलना चाहिए और जो भ्रष्ट सिस्टम नौकरशाह अफसरशाही हैं सरकार को सख्त कदम उठाकर भ्रष्टाचार में लिप्त मगरमच्छों पर नकेल कसनी चाहिए ना की रामदेव के जैसे सलवार पहनकर भागना चाहिए या फिर अपने आप को मजबूत किले में किला बंद करके यह कहे कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। 
  देश की जनता भी मजबूत सरकार चाहती है और इसीलिए बहुत ही लंबे समय के बाद बहुत सारी लंगडी सरकारों को और कमजोर सरकार को देखने के बाद देश की जनता ने एक मजबूत सरकार बनाई है लेकिन यह मजबूत सरकार का फर्ज बनता है कि अपनी जनता को भी किसान को भी मजबूत करें ना कि सिर्फ कॉर्पोरेट जगत के लोगों को ही और खुले आम तौर पर कालाबाजारी करने की इजाजत और अपने भ्रष्ट नौकरशाह नौकरशाही पर कबूतर के जैसे आंख मूंद कर बैठ जाए। 
  देश के जवान और किसान दोनों ही देश के लिए महत्वपूर्ण हैं। आज सिर्फ यही कहा जा रहा है कि यह पंजाब हरियाणा और राजस्थान के ही किसान हैं जो आवाज उठा रहे हैं लेकिन शायद उनकी याददाश्त कमजोर है जब 1950 में आंध्र प्रदेश के लोगों ने भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन का विचार पेश किया था तो देश की दो दो आयोग और देश के प्रधानमंत्री नेहरु जी ने भी इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कुचलने की कोशिश की लेकिन जनता के प्रदर्शन से आगे सरकार को बाद में झुकना पड़ा सिर्फ आंध्र प्रदेश का ही गठन नहीं हुआ आंध्र प्रदेश भारत का सबसे पहला राज्य है उसके साथ साथ ही पूरे भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन किए गए जो कि उस समय की हकूमत और हकूमत ने जो 2- 2 आयोग बिठाए थे दोनों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. 
   भारत माता की जय का सिर्फ नारा लगाने से काम नहीं चलेगा जो भारत माता के बच्चे हैं किसान हैं उनका भी ख्याल रखना पड़ेगा अगर मां के बच्चे ही भूखे नंगे फटे हाल और आत्महत्या करने को मजबूर हैं तो माता कैसे खुश रह सकती है माता की जय जय कार करने से मां खुश नहीं होती। इसीलिए सरकार को भारत माता जय की नारा लगवाने के साथ ही भारत माता के जो बच्चे हैं रखना पड़ेगा रखना चाहिए और यह सरकार का फर्ज है इसीलिए देश की जनता ने एक मजबूत सरकार को समर्थन दिया है। इसलिए समर्थन नहीं दिया कि अपनी मनमर्जी से कालाबाजारी करने वालों को बड़े कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने वाले काले कानून बनाएं और देश की जनता जो कि अधिकतर किसान है उसका गला घोटने का काम करें।

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